यूँ ही नहीं होती हैं ज़िन्दगी में तब्दीलियाँ, रोशन होने के लिए मोम को भी पिघलना पड़ता हैं !!
एक बार की बात है राजा विक्रम के १०० पुत्र थे । और राजा साहब की उम्र ढलती जा रही थी और उन्हें उत्तराधिकारी का चुनाव करना था । अगले राजा की घोसणा करनी थी । वो चाहतें थे की ऐसा राजा हो जो प्रजां का ख्याल रखें । प्रजां भी खुश रहें, राज्य का विस्तार भी करें । कुल मिला करके एक अच्छा राजा वो चुनना चाह रहें थे । लेकिन १०० राजकुमार थें और राजा साहब सबसे बराबर प्यार करते थे । रानी भी बराबर प्यार करती थी । तो एक का चुनाव करें तो करें कैसे ?
राजा ने तरकीब सोची और उन्होंने कहाँ सारे राजकुमारों से की आपके लिए भोज रखा है आज शाम में, आप सभी को पधारना हैं । सारे राजकुमार पहुँचें राजमहल के सामने जो प्रांगढ़ था वहां पर भोज की त्यारियां की गई । छपन पकवान वाली थालियाँ मंगवाईं गई । सब राजकुमारों के बैठने की वयवस्था की गई थी । सब आकर के बैठें । राजा साहब उस भोज में नहीं पहुँचें झरोख़े से वो सारा नज़ारा देख रहें थें । तो जैसे ही भोज शुरू होने वाला था । राजा के सेवकों ने कुत्ते छोड़ दिए । शिकारी कुत्ते वहां पर छोड़ दिए । अब कुछ जो राजकुमार थें गुस्से में खड़े हो गए शिकार करने के लिए निकल पड़े उन शिकारी कुत्तों का । कुछ जो राजकुमार थें वो दर करके भाग गए । अफ़रा - तफ़री का माहौल और ये बात जो थी राज्य में फ़ैल गए की वहां पर भोजन हो ही नहीं पाया । अब प्रजां भी परेशान की राजा ने उत्तराधिकारी का चुनाव किया होगा तो किया कैसे होगा । लेकिन राजा साहब ने अगले दिन ऐलान करवा दिया की आज जब सभा लगेगी तो आपके सामने राज्य का अगला राजा होगा । उत्तराधिकारी का चुनाव कर लिया गया हैं । समझ में नहीं आ रहा था लोगों को क्या होने वाला हैं । सभा लगी, राजा साहब पहुँचें । राजा विक्रम ने सारे राजकुमारों को बुलाया मंत्री थे, प्रजां थी सारे नजारा वहां पर । उन्होंने एक सवाल सबसे पूछा । पहले राजकुमार से पूछा जो बड़े थे, जेष्ठ थें । क्या आपने भोजन किया ? तो उन्होंने कहाँ की कहाँ करता महराज ! पिताजी आप तो जानते है की हमारे पहरेदार इतने निकम्मे हो चुकें हैं की उन्होंने शिकारी कुत्तों तक को नहीं रोक पाएं । हमे जाकर के शिकार करना पड़ा । तीन - चार को वहां पर मैंने मुठभेड़ किया, यही सारा कुछ बात हुआ । दूसरे राजकुमार से पूछा तो उन्होंने कहाँ की पिताजी मैं तो दर करके भाग गया था । मुझे दर लगता है तो मैं वहाँ रुका नहीं । ऐसे करके बारी - बारी से सबने घुमा फिरा के जबाब दिए । एक राजकुमार ने कहाँ की हाँ पिताजी ! मैंने भोजन किया । भोजन बड़ा स्वादिष्ट था । उस राजकुमार का नाम था शान्तनु । राजा साहब ने पूछा की शान्तनु सभा को बताओं की आपने भोजन किया तो किया कैसे ? शान्तनु ने बताया की निन्यानवें राजा की थाली वहाँ पर पकवानों से सजी हुई रखी थी । जैसे ही कोई शिकारी कुत्ता मेरी तरफ आता मैं थाली को आगे कर देता और खली कर देता । जो शिकारी कुत्ता था वो खाने में व्यस्त हो जाता और इस तरीके से मैंने अपना भोजन अच्छे तरीके से कर लिया । स्वादिष्ट भोजन था । ये जबाब सुन करके सभा में तालियां बजने लगीं । गरगराहट हो गई तालियों की और राजा साहब ने ऐलान कर दिया की अगले राजा का नाम हैं - शान्तनु !
ये छोटी - सी कहानी हमे बताती हैं की ज़िन्दगी में हर किसी की समस्याएँ हैं और सफ़लताओं का रोना - रोना बंद कीजिए । मुसीबत के बारे में बात करना बंद कीजिए । उपाय के बारे में बात करना शुरू कीजिए । आपके आस - पास ही की कहीं उपाय हैं । अगर आप चाहें तो आसानी से मिल सकती हैं ।
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