
हरिवंशराय बच्चन के अनमोल विचार Harivansh Rai Bachchan Motivational Shayari
“कभी फूलों की तरह मत जीना, जिस दिन खिलोंगे बिखर जाओंगे, जीना हैं तो पत्थर बन के जियो,किसी दिन तराशे गए तो खुदा बन जाओंगे।
गिरना भी अच्छा होता हैं औकात का पता चलता हैं, बढ़ते हैं जब हाथ उठाने को, अपनों का पता चलता हैं, जिन्हें गुस्सा आता हैं, वो लोग सच्चे होते हैं, मैंने तो झूठो को अक्सर, मुस्कुराते हुए देखा हैं, सिख रहा हु अब में भी इंसानों को पढ़ने का हुनर, सुना हैं चेहरे पे किताबों से ज्यादा लिखा होता हैं।
“आज अपने ख़्वाब को मैं सच बनाना चाहता हु, दूर की इस कल्पना के पास जाना चाहता हूँ।”
“असफलता एक चुनौती हैं, स्वीकार करो क्या कमी रह गयी, देखो और सुधार करो जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम, कुछ किये बिना ही जय जय कर नहीं होती कोशिश करनेवालों की हर नहीं होती।”
“उतर नशा जब उसका जाता, आती है संध्या बाला, बड़ी पुरानी, बड़ी नशीली नित्य ढला जाती हाला; जीवन की संताप शोक सब इसको पीकर मिट जाते; सुरा-सुप्त होते मद-लोभी जागृत रहती मधुशाला”
“जो बीत गयी सो बात गयी, जीवन एक सितारा था, माना वह बेहद प्यारा था, वह डूब गया तो डूब गया, अम्बर के आनन् को देखो। कितने इसके तारे टूटे, कितने इसके प्यर छुटे, जो छुट गए फिर कहा मिले, पर बोले टूटे तारों पर, कब अम्बर शोक मनाता हैं जो बीत गयी सो बात गयी।”
“तू न थकेंगा कभी, तू न थमेंगा कभी, तू न मुड़ेगा कभी, कर शपथ कर शपथ कर शपथ, अग्निपथ अग्निपथ, अग्निपथ”
“बजी नफ़ीरी और नमाज़ी भूल गया अल्लाताला, गाज़ गिरी, पर ध्यान सुरा में मग्न रहा पीनेवाला; शेख, बुरा मत मानो इसको, साफ़ कहूँ तो मस्जिद को अभी युगों तक सिखलाएगी ध्यान लगाना मधुशाला”
“चाहे जितना तू पी प्याला, चाहे जितना बन मतवाला, सुन भेद बताती हूँ अंतिम, यह शांत नहीं होगी ज्वाला, मैं मधुशाला की मधुबाला!”
“पथिक बना मैं घूम रहा हूँ, सभी जगह मिलती हाला, सभी जगह मिल जाता साकी, सभी जगह मिलता प्याला, मुझे ठहरने का, हे मित्रो, कष्ट नहीं कुछ भी होता, मिले न मंदिर, मिले न मस्जिद, मिल जाती है मधुशाला”
“एक बरस में एक बार ही जलती होली की ज्वाला, एक बार ही लगती बाज़ी, जलती दीपों की माला; दुनियावालों, किन्तु, किसी दिन आ मदिरालय में देखो, दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मानती मधुशाला”
“सजें न मस्जिद और नमाज़ी कहता है अल्लाताला, सजधजकर, पर, साक़ी आता, बन ठनकर, पीनेवाला, शेख, कहाँ तुलना हो सकती मस्जिद की मदिरालय से चिर-विधवा है मस्जिद तेरी, सदा-सुहागिन मधुशाला!”
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