किसी महान ने बड़ी सही बात कहीं है -" खुली छतों के दिए कब के बुझ गए होतें, कोई तो हैं जो इन हवाओं के पर कुत्तर देता हैं !!
एक बार की बात है एक वैद्य जी का दवाख़ाना था और दवाख़ाने के लिए जब - जब वो सुबह घर से निकलते थे तो उनकी धर्मपत्नी चिट्ठी दिया करती थीं । उस चिट्ठी में घर के लिए सामान लिखा होता था । दवाख़ाने पहुँच करके उस चिट्ठी का हिसाब लगाते थें । और जितना बनता था उतना ही रुपया जब तक न हो तब तक वो मरीज़ से फीस लेते थे उसके बाद में फ़ीस नहीं लेते थे । चाहे जितना आमिर रोगी आ जाएं । एक दिन वो दवाख़ाने पहुचें अपनी चिट्ठी खोलें तो उन्होंने देखा की घर के लिए सामान लिखा हुआ था । और नीचे बेटी की शादी के लिए सामान लिखा था । वैद्य जी को समझ नहीं आया की इतना रुपया आएगा तो आएगा कहाँ से वो ये सब सोच रहें थे । इस सबके बिच में उनके दवाख़ाने के सामने आकर के एक कार रुकी । कार में से एक सज्जन बहार निकले दवाख़ाने में जाकर के बैठे । वैद्य जी ने कहाँ बताओ भैया क्या बीमारी हैं ? तो उन्होंने कहाँ शायद आपने पहचाना नहीं । बरसों पहले मैं आपके यहाँ आया था ।
मेरा नाम कृष्ण लाल है और मेरी कार आपके दवाख़ाने के आगे रुक गई थी आगे आकर के क्योंकि पंक्चर हो गई थी । मेरा चालक पंक्चर बना रहा था । इस सब के बिच में मुझे छाया चाहिए थी, मैं आपके दवाख़ाने में आकर के बैठ गया था । बैठा हुआ था तो आपके यहाँ पर एक छोटी बच्ची, छोटी - सी गुड़िया जो है वो आपको बार - बार घीच रही थी कह रही थी बाबूजी चलो घर पर भूख लगी हैं, खाना खाना है । लेकिन आप जा नहीं रहे थे । क्योंकि आपको लग रहा था शायद मैं बीमार हूँ या मुझे कुछ चाहिए तो मुझे लगा की अब इनसे कुछ ले ही लेते हैं। तो मैंने आकर के आपको बीमारी बताई । हमारे बच्चे नहीं हो रहें थे । आपने बात - चित के ही बिच में एक पुड़िया बनाई और मुझे दवाई दे दी । मैं आपको पैसे देने लगा तो आपने मना कर दिया । आपसे ज़िद करने लगा की जो फ़ीस बनती है वो लिजियें । तभी वहां पर एक आदमी आया और उन्होंने बताया की आज का वैद्य जी का हिसाब पूरा हो गया हैं । तो मुझे आपकी पूरी कहानी समझ आई की आप उतने ही रूपए लेते हैं जितने घर के लिए सामान चाहिए होता हैं ।
उस दिन मैं घर गया अपनी बीवी को जाकर के ये बात बताई तो बीवी ने कहाँ की शायद आपकी मुलाकात ऊपर वाले के भेजे हुए बन्दे से हुई हैं । तभी वो इतने महान हैं की उन्होंने इतनी बड़ी बात की और ऐसा वो रोज करते हैं । वो दवाई हमने ली और आज हमारे आँगन में दो बच्चे हैं । आज मैं इस शहर में आया था और अपनी भांजी के लिए शादी का सामान खरीद रहां था । तो मुझे मालूम नहीं क्यों छोटी गुड़िया याद आ गई । तो जब सामान लेता जा रहा था उसे दोहराता जा रहा था । दो - दो सामान ले रहां था । ये बात सुनने के बाद वैद्य जी के आँखें चौड़ी - चौड़ी रह गईं । उन्हें समझ नहीं आया की क्या हुआ हैं । उन्होंने कहाँ की आप यक़ीन नहीं करेंगे कृष्ण लाल जी आज सुभह जो मेरी धर्मपत्नी ने चिट्ठी दी हैं उसमे बेटी की शादी के लिए सामान सबसे नीचे लिखा हैं ।
ऊपरवाला हर वक़्त हमारे साथ होता हैं बस थोड़ा - सा इंतज़ार करना होता हैं । अगर आपने अच्छा किया है तो अच्छा मिलेगा और अगर आपने बुरा किया है तो परिणाम आप सब जानते हैं । मेहनत करते रहिए हिम्मत मत हारियें !!
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