
दुनिया में आप सब पे नियंत्रण करना शिख लेते हैं तो आप सबसे शक्तिशाली हैं । लेकिन आप खुद पे नियंत्रण करना शिख लेते हैं तो आपसे महान इस दुनिया में कोई नहीं हैं।
एक बार की बात हैं गौतम भुद्ध से उनके शिष्य ने पूछा की बताइएं कर्म क्या हैं ? गौतम भुद्ध ने कहाँ की आओ एक कहानी सुनाता हूँ । एक बार एक राजा हाथी पे बैठ कर के अपने राज्य का भ्रमण कर रहा था और घूमते घूमते एक दुकान के आगे आकर के रुक गया । रुकने के बाद अपने मंत्री से कहाँ की मंत्रीजी मालूम नहीं क्यों लेकिन एक विचार ऐसा आ रहा हैं की इस दुकानदार को कल सुबह फ़ासी पे लटका दूँ । मंत्री इससे पहले की पूछ पाता की क्या वजह हैं या आपको ऐसा क्यों लगा । राजा साहब आगे बढ़ गए । मंत्री से रहा नहीं गया । अगले दिन भेष बदल कर के आम जनता के भेष में उस दुकान में पहुँचा और देखता हैं की दुकानदार जो था वो चन्दन की लकड़ी बेचता हैं । मंत्री जी ने पूछा की काम धंधा कैसा चल रहा हैं । तो उसने बताया की बहुत भूरा हाल हैं । लोग आते हैं चंदन को सूंघते हैं प्रशंसा करते हैं । वाह वाह ! बहुत अच्छा हैं । लेकिन खरीदते नहीं हैं । मैं सिर्फ़ इस इन्तज़ार में बैठा हूँ की हमारे राज्य के राजा की मिर्त्यु हो और उसकी ान्तस्ति में जो चंदन की लकड़ी जाएगी । बहुत सारी चंदन की लकड़ी खरीदी जाएगी । वहाँ से शायद मेरे दिन बदलना शुरू हो । मंत्री को सारा खेल समझ में आ गया की ये जो सोच रहा हैं शायद यहीं विचार हैं नकारत्मक वाले की राजा साहब जब यहाँ से निकले तो उनके दिमाग में भी इसके लिए उल्टा ही आया । भुद्धिमान मंत्री था । उसके एक विचार सोचा उसने कहाँ की थोड़ी चंदन की लकड़ी मैं खरीदना चाहता हूँ । दुकानदार भी खुश हुआ की चलो कोई तो ग्राहक आया । अच्छे से उसने कागज़ में लपेट कर के चंदन की लकड़ी मंत्री को दी । उसको मालूम नहीं था की कौन हैं ।
मंत्री अगले दिन दरबार में वो चंदन की लकड़ी लेकर के पहुँचें और राजा साहब से कहाँ की राजा साहब ! वो जो दुकानदार था उसने आपके लिए तोहफ़ा भेजा हैं । राजा बड़े खुश हुए । और राजा ने सोचा की अरे मैं फ़ालतू में उसको फांसी पे लटकाने के लिए सोच रहा था उसने तो तौफ़ा भेजा हैं । देखा की चंदन की लकड़ी थी । बड़ी सुगंधित थी । राजा साहब बहुत खुश हुएँ । राजा साहब ने सोने के सिक्के भिजवाएं उस दुकानदार के लिए । मंत्री अगले दिन वो सोने के सिक्के लेकर के पहुँचा वही आम जनता के भेष में । दुकानदार बहुत खुश हुआ । बोला की अरे मैं फ़ालतू सोच रहा था की राजा साहब को चला जाना चाहिए दुनिया से और चन्दन की लकड़ी ख़रीदी जाएगी । राजा साहब तो बड़े अच्छे हैं, दयालु हैं ।
ये छोटी सी कहानी ख़त्म हुई तो गौतम बुद्ध ने अपने शिष्यों से पूछा की बताइए कर्म क्या हैं ? शिष्यों ने कहाँ की शब्द जो हैं वो हमारे कर्म हैं । हम जो काम कर रहें हैं वो हमारा कर्म हैं । हमारे जो भावनाएँ हैं वो कर्म हैं । गौतम बुद्ध ने कहाँ की आपके विचार ही आपके कर्म हैं ।
अगर अपने विचारों को नियंत्रित करना शिख लिया तो आप सबसे महान हैं । अच्छा सोचियें तो अच्छा होगा ।
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