Kho-Kho क्या है और इसके नियम क्या है? What is Kho-Kho and What its Rules

Kho-Kho क्या है और इसके नियम क्या है? What is Kho-Kho and What its Rules

Kho-Kho क्या है और इसके नियम क्या है?

खो-खो पूर्णतया भारतीय खेल है (Kho Kho Is Completely Indian Origin)| इसका जन्म भारतीय परिवेश में हुआ| अभी तक इस खेल से संबधित प्रीतियोगिता का आयोजन राष्ट्रीय स्तर पर ही संभव हो सका है| इसका आयोजन पुरुषों एवं महिलाओं के साथ-साथ वरिष्ठ एवं कनिष्ठ स्तर पर बालकों एवं बालिकाओं के लिए भी आयोजित किया जाता है|

ऐसी मान्यता है कि इस खेल की उत्पत्ति महाराष्ट्र में हुई | सन् 1914 में डेकन जिमखाना पूना द्वारा इस खेल मे प्रारम्भिक नियमों का प्रतिपादन किया गया था| महाराष्ट्र फ़िज़िकल एजुकेशन समिति द्वारा इस खेल से संबंधित साहित्य को क्रमशः को सन् 1935, 1938, 1943 एवं 1949 में विभिन्न चरणों में प्रकाशित कराकर प्रसारित किया गया| सन् 1960 में विजयवाड़ा में प्रथम राष्ट्रीय खेल का आयोजन किया गया|

इस समय इसका आयोजन प्रांतीय,राष्ट्रीय, विद्यालय स्तर पर किया जाता है| सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले को एकलव्य, महिला खिलाड़ियों को महालक्ष्मी और बालकों को वीर अभिमन्यु पुरस्कारों द्वारा सम्मानित किया जाता है|

खो-खो क्या है?

खो-खो एक भारतीय मैदानी खेल है। इस खेल में मैदान के दोनो ओर दो खभो के अतिरिक्त किसी अन्य साधन की जरूरत नहीं पड़ती। यह एक अनूठा स्वदेशी खेल है, जो युवाओं में ओज और स्वस्थ संघर्षशील जोश भरने वाला है। यह खेल पीछा करने वाले और प्रतिरक्षक, दोनों में अत्यधिक तंदुरुस्ती, कौशल, गति और ऊर्जा की माँग करता है। खो-खो किसी भी तरह की सतह पर खेला जा सकता है।

खो-खो का इतिहास क्या है?

अधिकांश भारतीय लोगों द्वारा खेला गया खो-खो का खेल भारत में सबसे लोकप्रिय पारंपरिक खेलों में से एक है। खो-खो की उत्पत्ति का पता लगाना मुश्किल है, लेकिन कई इतिहासकारों का मानना है कि यह 'पकड़म-पकड़ाई' का एक संशोधित रूप है। परंतु क्या आप जानते हैं कि खो खो शब्द संस्कृत के शब्द “स्यु (syu)” से लिया गया है, जिसका अर्थ ‘उठो और जाओ’ है। भारत में खो-खो का इतिहास काफी गहरा है, इसकी शुरुआत सबसे पहले महाराष्ट्र राज्य में हुई थी और खो-खो मराठी भाषी लोगों के समक्ष काफी लोकप्रिय रहा है। महाराष्ट्र में इसकी उत्पत्ति के साथ-साथ खो-खो को प्राचीन काल में रथ में खेला जाता था और इसे रथेरा के रूप में जाना जाता था।

सभी भारतीय खेलों की भांति ही खो-खो भी सरल, सस्ता और आनंदमय खेल है। हालांकि, इस खेल को खेलने के लिए शारीरिक दुरूस्ता, बल, गति और सहनशक्ति की जरूरत होती है। नियंत्रित गति से चकमा देना, छ्लना और निकल कर भागना इस खेल को काफी रोमांचकारी बनाता है। खो-खो का खेल टीम के सदस्यों के बीच आज्ञाकारिता, अनुशासन, खेल कौशल और निष्ठा जैसे गुणों को विकसित करता है। वहीं कई वर्षों तक तो यह खेल अनौपचारिक तरीके से खेला गया था। खो-खो को लोकप्रिय बनाने के लिए पुणे के डेक्कन जिमखाना क्लब ने खेल को औपचारिक रूप देने की कोशिश की थी। 1935 में नव स्थापित अखिल महाराष्ट्र शारीरिक शिक्षण मंडल द्वारा नियम का पहला संस्करण, आर्यपथ्य खो-खो और हू-तू-तू प्रकाशित किया गया था। वहीं खेल में कुछ संशोधन भी किए गए थे।

पहले खो-खो में कोई नियम नहीं थे, सबसे पहला नियम पुणे के डेक्कन जिमखाना के संस्थापक लोकमान्य तिलक द्वारा बनाया गया था। जिसमें मैदान में खेल को खेलने की सीमा को निश्चित किया गया था। वर्ष 1919 में खो-खो को 44 गज लंबी मध्य रेखा और 17 गज चौड़ाई में दीर्घवृत्तीय क्षेत्र में परिवर्तित किया गया। वहीं 1923-24 में इंटर स्कूल स्पोर्ट्स ऑर्गेनाइजेशन की नींव रखी गई थी और खो-खो को पेश किया गया था।

पिछ्ले कई वर्षों में खेल के नियमों में कई बदलाव आए हैं। 1914 में प्रारंभिक प्रणाली में प्रत्येक प्रतिदुंदी को बाहर निकलने के लिए 10 अंक मिलते थे तथा समय निर्धारित होता था। वहीं 1919 में 5 अंक कर दिए गए और खेल को आठ मिनट तक कर दिया गया। यदि पूरी टीम समय से पहले ही रन बना लेती है, तो पीछे भागने वाले को हर उस मिनट के लिए 5 अंक का बोनस आवंटित किया जाता है। अन्य बदलाव खेल के मैदान में किए गए थे जैसे इसे दीर्घ वृत्ताकार से आयताकार में बदल दिया गया था। वहीं दो खंबों के बीच की दूरी को 27 गज तक छोटा कर दिया गया था और प्रत्येक खंबो से बाहर 27 गज x 5 गज की दूरी पर 'डी' जोन को बनाया गया था।

1957 में “ऑल इंडिया खो खो फेडरेशन” का गठन किया गया था और वहीं 1959-60 में विजय वाडा में पहली ऑल इंडिया खो-खो चैंपियनशिप का आयोजन किया गया, जो केवल पुरुषों के लिए आयोजित किया गया था और इसमें केवल 5 टीमों ने भाग लिया था। चैंपियनशिप को तत्कालीन मुंबई प्रांत ने राजाभाऊ जेस्ट के नेतृत्व में जीता था। साथ ही 1960-61 में पहली बार महिला चैंपियनशिप हुई थी। वर्ष 1963-64 में राष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले पुरुषों और महिलाओं के लिए पुरस्कार प्रदान किए गए और इन पुरस्कारों को "एकलव्य" और "झाँसी लक्ष्मी बाई पुरस्कार" का नाम दिया गया था। सबसे पहला पुरस्कार इंदौर में दिया गया था।

वर्ष 1970-71 में पहली जूनियर चैंपियनशिप को हैदराबाद में आयोजित किया गया था, जिसमें महाराष्ट्र विजेता और कर्नाटक उप विजेता रहे थे। यह प्रतियोगिता लड़कों के लिए आयोजित की गई थी और उसी वर्ष उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए "वीर अभिमन्यु" पुरस्कार भी प्रदान किया गया था। 1974-75 में इंदौर में लड़कों के साथ लड़कियों की पहली जूनियर चैंपियनशिप आयोजित की गई थी। वर्ष 1982 में, खेल को भारतीय ओलंपिक संघ के हिस्से के रूप में शामिल किया गया था।

वैसे तो खो-खो में कई नियम हैं, लेकिन हम यहां कुछ बुनियादी नियमों को सूचीबद्ध करेंगे, जो खेल के लिए आवश्यक होते हैं।

खो – खो के महत्वपूर्ण बिंदु

  1. खो – खो के मैदान का आकार = आयताकार
  2. खो – खो के मैदान की लंबाई = 29 मीटर
  3. खो – खो के मैदान की चौड़ाई = 16 मीटर
  4. खो – खो टीम के खिलाड़ियों की संख्या = 9+3 आरक्षित
  5. खो खो के मैदान में पारियां = 2 पारियां (4 बार)
  6. वर्गों की संख्या = 8
  7. वर्गों में बैठने वाले खिलाड़ी = अनुधावक
  8. पकड़ने वाला खिलाड़ी = सक्रिय अनुधावक
  9. मैच का समय = (9-5-9) 9 (9-5-9) मिनट
  10. मध्यांतर का समय = 5 मिनट

खो-खो का मैदान / Playground of Kho-Kho

खो-खो के मैदान की लंबाई 29 मीटर और चौड़ाई 16 मीटर होती है। मैदान के अंत में 16 मीटर × 2.75 मीटर के दो आयताकार होते हैं। मैदान के बीच में 23.50 मीटर लंबी और 30 सेंटीमीटर चौड़ी पट्टी होती है पार्टी के प्रत्येक सिरे पर लकड़ी का पोल होता है  इसमें 30 C.M. × 30 C.M. के 8 वर्ग होते हैं।

स्तंभ या पोस्ट 

मध्य रेखा के अंत में दो स्तंभ गाड़े जाते है। इनकी जमीन से ऊंचाई 1.20 मीटर होती है। स्तंभ का घेरा नीचे से 40 सेंटीमीटर ओर ऊपर की ओर कम होकर 30 सेंटीमीटर रह  जाता है।

क्रॉस – लेन / Cross-Lane

प्रत्येक आयताकार की लंबाई 16 मीटर चौड़ाई 30 सेंटीमीटर होती है। यह केंद्र रेखा को समकोण अथार्त 90 डिग्री पर काटती है। यह स्वंय भी दो अध्दर्क में बंटा होता है। क्रॉस – लेन के काटने पर बने 30 सेंटीमीटर × 30 सेंटीमीटर के क्षेत्र को वर्ग कहा जाता है।

अनुधावक या चेजर / Chaser

वर्गों में बैठे खिलाड़ी अनुधावक या चेजर कहलाते हैं। विरोधी खिलाड़ियों को छूने के लिए दौड़ने वाले को Active Chaser कहा जाता है।

रनर / Runner

चेजर के विरोधी खिलाड़ी को रनर कहा जाता है।

खो देना  / To Give Kho

अच्छी ‘खो’ देने के लिए एक्टिव चेजर को बैठे हुए चेजर को पीछे से हाथ से छूकर ‘खो’ शब्द ऊँची आवाज में कहना चाहिए। हाथ लगाने और ‘खो’ कहने का काम एक साथ होना चाहिए।

फाउल / Foul

यदि बैठा हुआ चेजर अथवा एक्टिव चेजर किसी तरह का उल्लंघन करते हैं तो यह  फाउल होता है।

दिशा ग्रहण करना  / Taking Direction

जब एक्टिव चेजर एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट तक जाता है तो इसे दिशा ग्रहण कहते हैं।

मुंह मोड़ना / To Turn the Face

यदि एक्टिव चेजर एक विशेष दिशा की ओर जाते हुए अपने कंधे की रेखा 90 डिग्री के कोण से अधिक दिशा में मोड़ लेता है तो इसे मुंह मोड़ना कहते हैं यह फाउल है।

पाँव-बाहर / Foot-Out

यदि रनर के दोनों पाँव सीमा रेखा से बाहर छू जाए तो उसे पाँव-बाहर माना जाता है, उसे आउट माना जाता है।

लोना / Lona

जब सभी रनर 9 मिनट में आउट हो जाए तो chasers द्वारा runners के विरुद्ध लोना अंकित किया जाता है, परंतु लोना का कोई अंक नहीं होता है।

अधिकारी / Officials

मैच के प्रबंध के लिए निम्न अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं।

  • दो अंपायर
  • एक  रेफ़री
  • एक टाइम – कीपर
  • एक स्कोरर

खो-खो खेल के नियम (Kho-Kho Rules in Hindi)

  • एक्टिव चेजर के शरीर का कोई भी भाग केंद्र पट्टी को नहीं लगना चाहिए।

  • एक्टिव चेजर अगर रनर को हाथ से छू लेता है तो वो रन आउट माना जाता है।

  • चेजर या रनर बनने का फैसला Toss के ज़रिए किया जाता है।

  • चेजर को एक्टिव चेजर पीछे से ही खो दे सकता है।

  • जब तक बैठे हुए चेजर को खो नहीं दी जाती, वह अपनी जगह से नहीं उठ सकता।

  • एक्टिव चेजर द्वारा खो देने पर ही वह चेजर के स्थान पर बैठ सकता है।

  • एक्टिव चेजर का मुँह उसके दौड़ने की दिशा में होना चाहिए।

  • खो मिलने के बाद चेजर उस दिशा में ही जाएगा जो दिशा उसने वर्ग से उठने के बाद केंद्र – पट्टी को पार करके अपनाई हो।

  • चेजर अपने वर्ग में इस तरह बैठेगा कि रनर के मार्ग में कोई रुकावट ना आए। यदि उसकी रुकावट से रनर आउट हो जाता है तो उसे आउट नहीं माना जाता।

  • एक्टिव चेजर के लिए पोल-लाइन को पार करना जरूरी है।

  • सभी चेजर इस प्रकार बैठते हैं कि उनके मुंह एक तरफ नहीं होते।

  • यदि बैठा हुआ चेजर अथवा एक्टिव चेजर किसी तरह का उल्लंघन करते हैं तो यह  फाउल माना है।

  • यदि एक्टिव चेजर एक विशेष दिशा की ओर जाते हुए अपने कंधे की रेखा 90 डिग्री के कोण से अधिक दिशा में मोड़ लेता है तो यह फाउल माना जाता है।

  • यदि रनर के दोनों पाँव सीमा रेखा से बाहर छू जाए तो उसे आउट माना जाता है।

  • जब सभी रनर 9 मिनट में आउट हो जाए तो chasers द्वारा runners के विरुद्ध लोना अंकित किया जाता है, लेकिन लोना का कोई अंक नहीं होता है।

  • खो-खो के मैच में 2 अंपायर, 1  रेफ़री और एक टाइम कीपर होता है।

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