
मुस्लिमों की शादी कैसी होती है
मुस्लिम शादी को इस्लाम धर्म मे निकाह कहा जाता है. इस्लाम के अनुसार निकाह के समय दूल्हा, दुल्हन, काजी, और चार गवाह दो लड़के की तरफ से तथा दो लड़की की तरफ से होना आवश्यक है. निकाह के दौरान काजी, दूल्हा और दुल्हन से मेहर के लिए गवाहों के सामने बात रखता है तो दोनों की मर्जी होना जरूरी है.
जिसके बाद निकाह की रस्में चलती है, जिसमें पहले दुल्हन से निकाह की इजाजत ली जाती है अगर दुल्हन निकाह कबूल कर लेती है तो उसके बाद दूल्हे से पूछा जाता है कि निकाह कबूल है अगर दूल्हा भी निकाह कबूल कर लेता है तो शादी मुक्कमल हो जाती है.
आपको बता दें कि मुस्लिम शादी इस्लाम शरीयत के तहत होती है कहा जाता है कि जो अल्लाह का हुक्म है यह एक किस्म की इबादत भी है.
लड़की लड़का देखने का दौर
रिश्ते की शुरूआत प्रस्ताव से होती है एक पक्ष से दूसरे पक्ष के लिए प्रस्ताव भेजा जाता है जब दूसरे पक्ष के लोग यह प्रस्ताव स्वीकार कर लेते हैं तब आगे की प्रकिया शुरू की जाती है.
तब लड़का लड़की को देखने का दौर चलता है इसमे ज्यादा लड़के लड़की को हाइलाइट नही किया जाता है क्योकिं इसमे डर रहता है कि रिश्ता होगा या नही इसके बाद लड़की वाले यह देखते है कि इनका परिवार कैसा है रहना खाना, परिवार के लोग दिलदार है या नही. कुल मिलाकर लड़के लड़की का परिवार इस्लामिक होना चाहिए. पसंद आने पर लोग लड़के या लड़की के हाथ मे कुछ रूपए दे देते हैं. जब दोनों लड़का और लड़की एक दूसरे को पसंद कर लेते हैं तब शादी की बात आगे बढ़ती है.
निसानी की रस्म
यह रस्म लड़की और लड़के दोनों के यहां होती हैं कभी- कभी लड़की वालो के यहां ही होती हैं इस रस्म में लड़का और लड़की एक- दूसरे को अंगूठी पहनाते है. इस रस्म मे कपड़े, मिठाई, जेवर आदि लाए जाते है. कभी- कभी ऐसा भी होता है कि इस रस्म के बीच निकाह भी करा दिया जाता है.
तारीख
इस रस्म के कुछ दिनों या महिनों बाद लड़की के यहां से लड़के वाले के निकाह की तारीख भेजी जाती हैं जिसमे लड़की के जीजा या लड़की के फूफा तारीख लेकर जाते हैं. जिसको इस्लाम धर्म में लाल खत बोला जाता है उस खत में शादी की तारीख भेजी जाती है.
दावत
दावत देने की शुरूआत नए समधी से होती हैं जो लोग अपने समधी को घर बुलाकर करते हैं.
दूल्हा दुल्हन की तैयारी
दूल्हे के लिए दुल्हन की तरफ से अच्छे कपड़े खरीदे जाते हैं और दुल्हन के लिए दूल्हे की तरफ से बड़े जोरो की तैयारी की जाती हैं उसी के साथ लड़की लड़के के रिश्तेदारों के लिए भी कपड़ो की खरीदारी की जाती हैं जिसे लोग मादरे हक कहते हैं.
निकाह की सजावट
लोग अपनी हैसियत के अनुसार ही निकाह का खर्चा करते हैं और बजट में ही बाकी शादी की तैयारी करते हैं और निकाह का समय ऐसा होता हैं जिसमे खुशी का माहौल होता हैं इसमे लोग दिल खोलकर खर्चा करते हैं जिसको देखकर रिश्तेदार खुश हो जाये.
बारात की तैयारी
बारात सुबह को रवाना होती है जिससे पहले बहुत सी रस्में निभाई जाती हैं जैसेकि- हल्दी की रस्म. हल्दी एक ऐसी रस्म हैं जिसके बिना शादी फीकी लगती हैं. लड़का लड़की दोनों के यहां हल्दी की रस्म होती हैं हल्दी मे जो अहम रोल निभाती है, वह भाभी होती है यह दौर मजाक का दौर होता है बारात से पहले नियाज दी जाती हैं.
हल्दी की रात ही सहरा पढ़ा जाता हैं और अगली सुबह दुल्हा तैयार होता जिसकी जिम्मेदारी जीजा या उसके फूफा की होती है तैयार होने के बाद उसको आस पड़ोस के लोग रिश्तेदार, दोस्त, उसके गले मे नोटों के हार पहनाते हैं बता दें कि इस दौर में बुआ और बहन की सबसे अहम भूमिका होती हैं.
बारात पहुचनें के बाद
बारात पहुचनें का समय 12 से 1 के बीच का होता हैं जिसमे लड़की वाले दिल खोलकर उनका स्वागत करते हैं. बारात पहुंचने के बाद शादी की बाकी रस्में लड़की की तरफ से की जाती हैं जैसें बारात पहुच जाती हैं तो सबसे पहले निकाह पढ़ाया जाता हैं. निकाह के बाद लोग छुआरे खिलाकर मुबारकबाद देते हैं और एक दूसरे के गले मिलते हैं धीरे- धीरे यह सिलसिला चलता रहता हैं और रिश्तेदार खानपान करते है.
जूते चुराने की रस्म
जूते चुराने की रस्म लड़की की तरफ से की जाती हैं यह रस्म साली के द्रारा की जाती हैं. इसमे लड़की की बहन जूते चुराती हैं इस दौर मे बहुत सारी मजाक की जाती है जो दूल्हा और उसकी सालियां आपस में करती हैं. सालियां अपने नये जीजा के गले में हार पहनाती है उसके बाद जीजा बदले में साली को रूपए गिफ्ट देता है अगर नही देता है तो साली उसका कॉलर नही छोड़ती हैं और अपना हक वो अच्छे से ले लेती हैं.
विदाई की रस्म
निकाह के बाद यह एक समय ऐसा होता है जिसमें लड़की के घर वाले अपनी लड़की को रोते रोते विदा करते हैं दुल्हन भी रोती हैं क्योकिं मां- बाप से बिछड़ने का सबसे ज्यादा दुख दुल्हन को होता हैं.
दूल्हे के घर में दुल्हन का प्रवेश
जब दुल्हन दूल्हे के घर मे प्रवेश करती है तो उसका स्वागत करने के लिए पहले ही बहुत सी तैयारी की जाती हैं और धूमधाम से दुल्हन का स्वागत किया जाता हैं. घर के मुख्य द्वार पर दुल्हन और दूल्हे को खड़ा करके मजाक की जाती है और लड़का अपनी बहनों को रूपए और गिफ्ट देता हैं तभी बहने दुल्हन को अन्दर प्रवेश करने देती है.
वलीमा की रस्म
वलीमा इस्लाम धर्म मे सुन्नत माना जाता हैं शादी के बाद वलीमे की रस्म बहुत जरुरी होती हैं. जब यह रस्म होती तो लड़की के घर वाले बारात की तरह ही लड़की से मिलने आते हैं वलीमे में दूल्हे के रिश्तेदार और दोस्त भी होते है और इस तरह मिलते हैं तो माहौल भी खुशनुमा हो जाता हैं. और दुल्हन के घर वाले शाम होते ही दुल्हन नौरोजी के लिए घर ले जाते हैं.
पीरियड आते ही मुस्लिम लड़कियों की शादी जायज: कब बदलेगा कट्टरपंथियों का कानून
माहवारी क्या है?
माहवारी महिलाओं के शरीर में होने वाली एक सामान्य वैज्ञानिक क्रिया है। किशोरवय से शुरू होकर अमूमन अधेड़ावस्था तक यह मासिक प्रक्रिया चलती है। विज्ञान के नजरिए से देखें तो पीरियड गर्भाशय की आंतरिक सतह एंडोमेट्रियम के टूटने से होने वाला रक्त स्राव है। गर्भधारण और शरीर में हार्मोन नियंत्रण के लिए इस प्रक्रिया का सामान्य होना आवश्यक है।
क्या माहवारी का शादी की उम्र से कोई रिश्ता है?
नहीं। अमूमन माहवारी 15 साल की उम्र में शुरू हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्ययन बताते हैं कि 20 साल की उम्र से पहले शादी और मॉं बनने का महिलाओं के आगे के जीवन पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
फिर पीरियड शुरू होते ही लड़कियों की शादी क्यों जायज है?
दकियानूसी सोच, कठमुल्लों के दबाव और मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट 1937 की वजह से यह स्थिति है। यूनिसेफ के आँकड़े बताते हैं कि भारत में 27 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल और 7 फीसदी की 15 साल की उम्र से पहले हो जाती है। इसमें एक बड़ा हिस्सा समुदाय विशेष का है।
क्या बाल विवाह निषेध कानून (पीसीएमए) 2006 समुदाय विशेष पर लागू होता है?
जवाब हाँ भी है और ना भी है। कानूनी स्थिति बेहद स्पष्ट नहीं है। दिल्ली हाईकोर्ट ने 2012 में एक 15 साल की लड़की की अपनी मर्जी से शादी को वैलिड मानते हुए कहा था कि इस्लामिक कानून के मुताबिक लड़की मासिक धर्म शुरू होने के बाद अपनी इच्छा के मुताबिक शादी कर सकती है। गुजरात हाई कोर्ट ने 2015 में कहा था कि बाल विवाह निषेध कानून 2006 के दायरे में समुदाय विशेष वाले भी आते हैं। अक्टूबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस एमबी लोकुर और दीपक गुप्ता ने समुदाय विशेष के अलग विवाह कानून को पीसीएमए के साथ मजाक बताया था। सितंबर 2018 में पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा था कि समुदाय विशेष पर यह कानून लागू नहीं होता। अदालत का कहना था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ स्पेशल एक्ट है, जबकि पीसीएमए एक सामान्य एक्ट है।
तीन तलाक की तरह लड़कियों को इस कलंक से भी मिलेगा छुटकारा?
उम्मीद बॅंधी है। दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर सभी धर्मों में शादी की उम्र को लड़के और लड़कियों के लिए एक समान न्यूनतम 21 साल करने की माँग की गई है। इस पर अगली सुनवाई 30 अक्टूबर को होनी है।
याचिका दाखिल होने से उम्मीदें जगने का कारण भी तीन तलाक का ही मामला देता है। फरवरी 2016 में उत्तराखंड की शायरा बानो ने तीन तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला पर प्रतिबंध की मॉंग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। अगस्त 2017 सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया। जुलाई 2019 मोदी सरकार ने एक साथ तीन तलाक को अपराध बनाने वाला कानून बनाया।
ब्याह की उम्र कितनी, बहस पुरानी
शादी की न्यूनतम उम्र कितनी हो इस पर भारत में अरसे से बहस चल रही है। अंग्रेजी राज में इस संबंध में पहली बार कानून बना। बाद में कई बार बदलाव हुए। लेकिन, समुदाय विशेष के लोग बदलाव से अछूते रहे।
1860 के इंडियन पीनल कोड में शादी की उम्र का कोई जिक्र नहीं था, लेकिन 10 साल से कम उम्र की लड़की के साथ शारीरिक संबंध को गैरकानूनी बताया गया था। फिर धर्म के आधार पर शादी की उम्र को लेकर कानून आए। इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट 1872 में लड़के की न्यूनतम उम्र 16 साल और लड़की की न्यूनतम उम्र 13 साल तय की गई। 1875 में आए मेजोरिटी एक्ट में पहली बार बालिग होने की उम्र 18 साल तय की गई। इसमें शादी की न्यूनतम उम्र का तो कोई जिक्र नहीं था, लेकिन लड़के और लड़की दोनों के बालिग होने की उम्र 18 साल मानी गई।
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